ये हैं 32 साल के अनिल सोनुने। कंप्यूटर की कोई डिग्री नहीं है। जानिए, फिर क्यों आईआईटी से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक उनका लोहा मान रहे हैं
खेतों के बीच गाय-भैंस के तबेले के नजदीक बना कक्षा चार तक का सरकारी स्कूल। दो शिक्षक, 100 छात्र। लेकिन पढ़ाई कंप्यूटर और प्रोजेक्टर के जरिए होती है। यह काम कर दिखाया है यहां के टीचर अनिल सोनुने ने। उन्होंने अपनी मेहनत और अपने ही पैसों से टीन की छत के नीचे बने कमरे को डिजिटल क्लासरूम में बदल दिया है।
खेतों के बीच गाय-भैंस के तबेले के नजदीक बना कक्षा चार तक का सरकारी स्कूल। दो शिक्षक, 100 छात्र। लेकिन पढ़ाई कंप्यूटर और प्रोजेक्टर के जरिए होती है। यह काम कर दिखाया है यहां के टीचर अनिल सोनुने ने। उन्होंने अपनी मेहनत और अपने ही पैसों से टीन की छत के नीचे बने कमरे को डिजिटल क्लासरूम में बदल दिया है।
बत्तीस साल के अनिल को माइक्रोसॉफ्ट ने इस साल के इनोवेटिव टीचर अवॉर्ड से नवाजा है। स्लोवाकिया के प्राग शहर में 21 दिसंबर को उन्हें सम्मानित किया जाएगा। वहीं आकाश टैबलेट डेवलप करने वाली आईआईटी मुंबई ने उनसे इसके लिए मराठी में कंटेंट बनाने को कहा है। उन्होंने पढ़ाने के लिए अपनी वेबसाइट बनाई है और खुद कंटेंट जुटाते हैंं।
मजे की बात है कि अनिल ग्रेजुएट भी नहीं हैं। न ही उन्होंने कंप्यूटर में कोई कोर्स किया है। उन्होंने एजुकेशन में डिप्लोमा (डीएड) करने के बाद 2000 में महाराष्ट्र के जालना जिले में निमखेड़ा कस्बे के इस स्कूल में नौकरी शुरू की थी। तब उनकी तनख्वाह केवल 7 हजार रुपए थी। लेकिन कक्षा पांच में अंबाजी के नवोदय विद्यालय में पढ़ते समय पैदा हुए कंप्यूटर प्रेम के कारण, नौकरी मिलते ही उन्होंने 40 हजार कीमत का एक डेस्कटॉप कंप्यूटर खरीदा। इसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा। लेकिन तभी उनके दिमाग में कंप्यूटर के जरिए पढ़ाई को दिलचस्प बनाने का ख्याल घर कर गया था।
लेकिन इस कंप्यूटर को वे क्लास में नहीं ले जा पाते थे। इसलिए चार साल बाद उन्होंने 42 हजार रुपए में एक लैपटॉप खरीदा। इसके लिए फिर लोन लिया। अब वे बच्चों को तरह-तरह के चित्रों और लघु फिल्मों के जरिए पढ़ाने तो लगे लेकिन भाषा एक बाधा थी। बच्चे मराठीभाषी थे और अधिकतर कंटेंट अंग्रेजी में। उन्होंने इंटरनेट से माइक्रोसॉफ्ट फ्लैश ट्यूटोरियल जैसे कुछ सॅाफ्टवेयर डाउनलोड कर मराठी में कंटेंट तैयार करना शुरू किया। इस प्रोजेक्ट को नाम दिया क्लासमेट। सोनुने ने २००९ में 'बालजगत' वेबसाइट बनाई। इस पर गणित, मराठी और अंग्रेजी के पाठ अपलोड किए। इस वेबसाइट को ८९ देशों से लगभग ६ लाख हिट्स मिलीं। फिर उन्होंने 'बालजगत डॉट कॉम' डोमेन खरीद लिया।
देश विदेशो से मिले पुरस्कार
माइक्रोसॉफ्ट की ओर से २०१० में साउथ अफ्रीका के केप टाउन मेु दनिया भर के 550 प्राथमिक शिक्षकों की कॉन्फ्रेंस में सोनुने का डिजिटल क्लासरुम सराहा गया। कंप्यूटर पत्रिका चिप द्वारा आयोजित ऑनलाईन प्रतियोगिता उन्होंने प्रथम पुरस्कार जीता। यहां से मिले प्रोजेक्टर को उन्होंने अपने लैपटॉप के साथ जोड़ स्कूल में डिजिटल क्लासरूम बना दिया।
सोनुने कहते हैं - सरकारी स्कूलों में खानापूर्ति करने के लिए आनेवाले शिक्षक और उनके अध्यापन के तरीको से छात्र उब जाते हैं। इसी कारण वे स्कूल से दूर भागते हैं। डिजिटल क्लासमेट छात्रों को आकर्षित करता है। हमारे यहां इतिहास, भूगोल, विज्ञान, गणित, भाषा जैसे सभी विषयों की पढ़ाई इसी के जरिए होती है। छात्रों को इसी डिजिटल बोर्ड पर पढऩा लिखना सिखाया जाता है, विज्ञान के सूत्र और गणित समझाए जाते है। चित्रों के माध्यम से इतिहास में सफर कराई जाती है। एनिमेशन के जरिए कविताएं पढ़ाई जाती है।
आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर समीर सहस्रबुद्धे से सोनुने मेल पर मिले। सहस्रबुद्धे अपने सहयोगी डॉ. पीपी पाठक के साथ उनका डिजिटल क्लासरुम देखने निमखेड़ा आए। उन्होनें इस क्लासमेट को आईआईटी के प्रोजेक्ट में रोल मॉडेल के रूपमें दर्ज किया है। साथ ही आकाश टैबलेट पर बगाों के लिए इंटरेस्टिंग कंटेंट जुटाने का जिम्मा भी उन्हें सौंपा। सोनुने कहते हैं - मैं हर छात्र के हाथ में टैबलेट देना चाहता हंू। टैबलेट से गेम्स हटा कर हम उसे स्टडी मटेरिअल से अपडेट करेंगे। इससे छात्रों को भारी बस्ते ढोने नहीं पडेंगे। स्कूल के सभी टैब्लेट एक सर्वर से जुडे होंगे। किसी भी बगो को पढऩे में आ रही मुश्किलों को टीचर आसानी से समझ सकेंगे।
क्या है क्लासमेट
कंप्यूटर को प्रोजेक्टर और स्पीकर से जोड़ कर बना है डिजिटल क्लासरूम। इसमें सीडी ड्राइव, पेन ड्राइव भी कनेक्ट कर सकते हैं। यह बोर्ड टचस्क्रीन है। इसे डिजिटल पेन (लेजर सेंसर) या वायरलेस की-बोर्ड से भी ऑपरेट कर सकते है। इसमें एक साथ १६ माउस कनेेक्ट कर सकते हैं। खास बात है कि, इस क्लासमेट को छोटे से बैग में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है।
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