रुचिका राठौड. के हौसले को हमारा सलाम.
रुचिका राठौड ये 12 की छात्रा ...है गरीबी के कारण अपने ही स्कूल मे चौकीदारी का काम करती है
सपने उन्हीं के सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.. इस बात को सच साबित कर रही है रुचिका राठौड.
रुचिका राठौड ये 12 की छात्रा ...है गरीबी के कारण अपने ही स्कूल मे चौकीदारी का काम करती है
सपने उन्हीं के सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.. इस बात को सच साबित कर रही है रुचिका राठौड.
रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए उसने हाल ही में 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करने का निश्चय किया। रुचिका को जैसे ही
यह जानकारी मिली कि उसके स्कूल में महिला सुरक्षाकर्मी की जगह खाली है, उसने इस नौकरी के लिए एप्लाई किया और उसका सेलेक्शन हो गया। अब वह यहां पर दोपहर 12.00 से शाम 6.00 तक नौकरी करती है, रुचिका के पिता विनोदभाई राठौड़ मोरा भागल इलाके में स्थित एक फर्नीचर की दुकान में काम करते हैं और मां हेमाबेन टिफिन सेंटर चलाती हैंस्कूल की छात्राएं जब अपना रिजल्ट लेने स्कूल आई थीं, तब रुचिका हाथ में डंडा लेकर स्कूल की पहरेदारी कर रही थी। जिन सहपाठियों के साथ वह यहां पढ़ाई किया करती थी, वहीं सुरक्षाकर्मी की वर्दी में देख उसे सहपाठी क्या कहेंगे, रुचिका को इसकी फिक्र नहीं थी, क्योंकि उसे अपने परिवार की जिम्मेदारी जो उठाना है।
यह जानकारी मिली कि उसके स्कूल में महिला सुरक्षाकर्मी की जगह खाली है, उसने इस नौकरी के लिए एप्लाई किया और उसका सेलेक्शन हो गया। अब वह यहां पर दोपहर 12.00 से शाम 6.00 तक नौकरी करती है, रुचिका के पिता विनोदभाई राठौड़ मोरा भागल इलाके में स्थित एक फर्नीचर की दुकान में काम करते हैं और मां हेमाबेन टिफिन सेंटर चलाती हैंस्कूल की छात्राएं जब अपना रिजल्ट लेने स्कूल आई थीं, तब रुचिका हाथ में डंडा लेकर स्कूल की पहरेदारी कर रही थी। जिन सहपाठियों के साथ वह यहां पढ़ाई किया करती थी, वहीं सुरक्षाकर्मी की वर्दी में देख उसे सहपाठी क्या कहेंगे, रुचिका को इसकी फिक्र नहीं थी, क्योंकि उसे अपने परिवार की जिम्मेदारी जो उठाना है।
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