Hitendra singh | 8:48 AM |
मां को स्वर्ग से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है, क्योंकि प्रसव पीड़ा को सहने से लेकर अपने बगो का जिस तरह से वह पल-पल ख्याल रखती है, वह शायद कोई नहीं रख सकता, लेकिन प्रकाश कौर एक एेसी मां हैं, जिन्होंने भले ही उन बच्चों को जन्म नहीं दिया, लेकिन वे बगो एक सुर में जब उन्हें मां कह कर बुलाते हैं, तो प्रकाश कौर के उमड़ते ममत्व का कोई पारावार नहीं होता। सचमुच प्रकाश का यह सुख हर सुख पर बलिहारी है। तभी तो प्रकाश का ममता का आंचल दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और प्रकाश की बरगदी छाया तले उनके कर्म स्थली 'यूनीक होमÓ  में   बच्चो  को कभी अंजाना नहीं लगा। 


प्रकाश कौर की कहानी झकझोरने वाली है। प्रकाश को कोई लावारिस छोड़ कर सड़क पर चला गया था। शायद यह दु:खद अहसास प्रकाश को अंदर तक चुभ गया। उन्होंने लावारिस और यतीम बच्चों की संरक्षा और सुरक्षा जैसे पुण्य कार्य का बीड़ा उठा लिया। 
प्रकाश 60 साल की हो चुकी हैं। वे अपने आश्रय केंद्र यूनीक होम में लड़कियों के लिए उम्मीदों की 'अम्माÓ हैं। अपने इस अम्मा को 60 लड़कियां हर पल घेरे रहती हैं, क्योंकि यही है उनका घर और यही है उनका प्यार। प्रकाश कहती हैं, 'वे मेरे अपने बच्चे हैं और उन्हें कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि वे लावारिस हैं।Ó प्रकाश का कुनबा बड़ा होता जा रहा है, साथ ही उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ती जा रही हैं, तो प्रकाश कौर की ममता भरा आंचल भी फैलता जा रहा है। उन्होंने उन बच्चियों को आसरा दिया है, जिन्हें कभी अपनों ने ही ठुकरा दिया था।

प्रकाश जिन  बच्चों  की जिंदगी बन कर आईं, उनके बारे में जानने पर बेदर्द जमाने का असली चेहरा सामने आता है। सिया तो सिर्फ कुछ ही घंटे पहले पैदा हुई थी। किसी ने उसे जन्म के बाद एक पॉलीथिन में लपेट कर नाली में फेंक दिया था। रेवा कुछ ही हफ्तों की रही होगी, जब उसके मां-बाप ने उसे कपूरथला के निकट हाइवे पर फेंक दिया। रजिया और राबिया को तो उसके मां-बाप ने जालंधर के खुले मैदान में फेंक दिया था। उस समय वह बमुश्किल 15 दिन की रही होगी।

'यूनीक होमÓ में चार दिन से लेकर 19 साल तक की लड़कियां है। एक समय यह लड़कियां लावारिस थीं। इनका जुर्म यह था कि वे लड़की के रूप में पैदा हुई थीं। कठोर ह्रदय मां-बाप ने इन्हें त्यागने में जरा भी नहीं सोचा और फेंक कर चले गए। यूनीक होम का संचालन गुरु गोबिंद सिंह के शिष्य भाई घनय्या जी के नाम पर बना ट्रस्ट करता है। ट्रस्ट का उद्देश्य शिक्षा के जरिए इन बच्चियों में आत्मसम्मान के भावना को जगाना और समाज में उन्हें उचित स्थान दिलाना है। प्रकाश कौर इसमें महत्ती भूमिका निभाती आ रही हैं। यूनीक होम में रहने वाली लड़कियों को याद नहीं है कि उन्हें किस हाल में यहां लाया गया था। इस घर के सभी बच्चे इस बात को बखूबी जानते हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें सिर्फ इसलिए त्याग दिया, क्योंकि उन्हें बेटी नहीं, बेटा चाहिए था, लेकिन इस जहरीले सच ने उनके आत्मबल को बढ़ाया है और इससे खुद को साबित करने का उनका संकल्प मजबूत हुआ है। 

प्रकाश कौर की देखभाल और संरक्षण का ही नतीजा है कि यह लड़कियां समाज में अपने लिए उचित जगह बनाना चाहती हैं। हालांकि इसमें लड़की होना उनकी सबसे बड़ी बाधा बनता है। प्रकाश कौर को भी पता है कि उनके सामने असली चुनौती क्या है, लेकिन उन्हें ऊपर वाले पर पूरा यकीन है। प्रकाश कौर कहती हैं, 'यह ऊपरवाले का काम है। जब उसने जिम्मेदारी दी है, तो हिम्मत भी वही देगा और जब आज तक मुझे कोई मुश्किल नहीं आई तो आगे भी नहीं आएगी। नेकी के काम में कभी कोई रुकावट नहीं आती है। 'उनकी उम्र आज भले ही 60 साल हो गई हो, लेकिन यूनीक होम में रहने वाली सभी 60 लड़कियों के लिए रोजाना तीन वक्त चपाती बनाने में उन्हें जरा भी आलस नहीं आती। यूनीक होम में प्रवेश करते ही आप पालनों में छोटी-छोटी बच्चियों को लेटे हुए पा सकते हैं। 

यूनीक होम की लड़कियां मसूरी के सेंट मेरी जैसे अंग्रेजी माध्यम के अच्छे स्कूलों में पढ़ती हैं। नाजों और प्यार की छांव में पली-बढ़ी इन लड़कियों का अन्य लड़कियों की तरह अरमान भी हैं। मसूरी के कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रही शीबा सफल न्यूरोसर्जन बनना चाहती हैं। वे कहती हैं, 'मैं यह साबित करना चाहती हूं कि लड़कियां परिवार पर कतई बोझ नहीं होतीं।Ó शीबा ने ए-प्लस ग्रेड के साथ हमेशा अपनी क्लास में टॉप किया है। शीबा को पूरा विश्वास है कि उसे देश के चोटी के किसी मेडिकल कॉलेज में दाखिला जरूर मिलेगा। इनमें से कुछ तो अच्छे घरों में ब्याही भी हैं। प्रकाश कौर लड़कियों की शादी हो जाने के बाद भी उनका पूरा खयाल रखती हैं। अगर ससुराल वालों के साथ कोई दिक्कत आती है, तो वे अपनी बच्चियों को हक दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। ऐसा ही एक वाक्या यूनीक होम में रह चुकी अलका के साथ घटित भी हुआ। अलका की शादी के बाद उनके पति की आसमयिक मौत हो गई, तो उनके ससुराल वालों ने सारी संपत्ति हड़प ली और अलका को घर से बाहर कर दिया। प्रकाश कौर ने हस्तक्षेप कर अलका को उसका हक दिलाया। प्रकाश कौर अब तक यूनीक होम की करीब 17 लड़कियों की शादी करा चुकी हैं। इनमें से कुछ लड़कियों ने शादी से पहले ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई कर ली थी, जबकि ज्यादातर की शादी हाई स्कूल पास करने के बाद ही हो गई। बहुत-सी लड़कियों ने आजीवन अविवाहित रहते हुए प्रकाश कौर की तरह खुद को समाज सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया है। 

प्रकाश कौर 24 अप्रैल को सारी लड़कियों के साथ मिल कर इन बच्चियों का जन्मदिन मनाती हैं। सचमुच इन लड़कियों के लिए यह दिन खास होता है। प्रकाश अपने इन प्यारी  बच्चियों  को गर्मियों की छुट्टियों में प्लान कर घूमाने के लिए भी लें जाती हैं। प्रकाश को इन बच्चों  का कितना खयाल है कि इनके लिए वे खुद अपने हाथों से खाना बनाती हैं। किसी दिन खाने में चावल, चपाती और सब्जी होती है, तो किसी दिन खाने में मुंह मीठा करने की पकवान होती है। प्रकाश कौर के इन  बच्चियों   को बहुत ध्यान से पालने और अच्छे संस्कार देने का ही नतीजा है कि लोग उनके पास इन बच्चियों को गोद लेने के लिए उत्सुक  होकर आते हैं। बहुत अजीब दृश्य होता है जब एेसे लम्हे आते हैं। प्रकाश कौर गोद लेने वालों को यह कह कर मना कर देती हैं कि यह मेरे कलेजे के टुकड़े हैं, मैं इनके बिना एक पल भी दूर नहीं रह सकती और झट से बगिायों को अपने आंचल में छुपा लेती हैं। जहां पूरे देश में बेटियों को बेटों की तुलना में उपेक्षा मिलती है, वहां प्रकाश कौर का यह प्रयास देश में लड़कियों के मान-सम्मन बढ़ाने का एक अनूठा प्रयास है। देश में कमोबेश लिंगानुपात की स्थिति बहुत बुरी है। पंजाब देश का एेसा राज्य है, जहां लिंग अनुपात बेहद खराब है। राज्य में साल दर साल लड़कियों की संख्या घटती जा रही है। मजबूरन यहां के मर्दों को शादी के लिए दूसरे राज्यों में लड़कियां तलाश करनी पड़ रही हैं। ऐसे में पंजाब जैसे राज्य में प्रकाश का यह सद्कार्य उम्मीद की एक किरण बन कर आई है। सचमुच प्रकाश कौर की नि:स्वार्थ सेवा दूसरों के लिए सिर्फ मिसाल ही नहीं, बल्कि एक अद्भुत प्रेरणा भी है।  

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